Bihar board 10th sanskrit solution chapter 1

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class 10 sanskrit chapter 1 bihar board मंगलम पाठ का प्रश्न उत्तर objective

Bihar board class 10th sanskrit solutions संस्कृत के प्रथम पाठ के प्रश्न उत्तर

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1. उपनिषदः वैदिकवाङ्मयस्य अन्तिमे भागे दर्शनशास्त्रस्य सिद्धान्तान् प्रकटयन्ति।

‘सर्वत्र परमपुरुषस्य परमात्मनः महिमा प्रधानतया गीयते ।

हिन्दी-

उपनिषद् वैदिक साहित्य के अन्तिम भाग में दर्शनशास्त्र के सिद्धान्त अभिव्यक्त करते हैं । सर्वत्र परमपुरुष परमात्मा की महिमा प्रधानरूप से गाते हैं।

2. हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम् ।

तत्त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ॥

हिन्दी –

हे पूषन् ! हे सूर्य ! आदित्यमंडल में अवस्थित ब्रह्म का मुख, अर्थात् ब्रह्मज्ञान जो हिरण्य जैसा ज्योतिर्मय पात्र से ढँका हुआ है, मुझे सत्यधर्मा को आत्मा की उपलब्धि (आत्मज्ञान) कराने के लिए उसे, अर्थात् उस आच्छादन को तू उघाड़ दो ।

3. अणोरणीयान् महतो महीयान् आत्मास्य जन्तोर्निहितो गुहायाम् ।

तमक्रतुः पश्यति वीतशोको धातुप्रसादान्महिमानमात्मनः ॥

हिन्दी –

मुमुश्रु पुरुष आत्मा को किस रूप से जानता है ? इस महर्षि ने इस श्लोक में स्पष्ट किया है। यह अणु से भी अणु और महान् से भी महान् आत्मा जीव की हृदयरूपी गुहा में स्थित है। निष्काम और अभ्यासी पुरुष अपनी इन्द्रियों के ही प्रसाद से आत्मा की उस महिमा को देखता है और शोकरहित हो जाता है। इन धातुओं, अर्थात् इन्द्रियों के प्रसाद से वह (साधक) अपने आत्मा की कर्मनिमित्तक वृद्धि और क्षय से रहित महिमा को देखता है ।

4.सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः ।

येनाक्रमन्त्यृषयो ह्याप्तकामा  यत्र तत् सत्यस्य परं निधानम् ॥

हिन्दी- उक्त श्लोक में स्पष्ट किया गया है कि सत्य ही जय, को प्राप्त होता है, मिथ्या नहीं अर्थात् सत्यवान को विजय प्राप्त होती है, मिथ्यावादी को नहीं । सत्य से देवयान मार्ग का विस्तार होता है, जिसके द्वारा आप्तकाम ऋषि लोग उस पद (स्थान) को प्राप्त होते हैं, जहाँ वह सत्य का परम निधान मूल रूप, अर्थात् भण्डार वर्तमान है। इस श्लोक में सिद्ध करता है कि सत्य ही ब्रह्म है, इसलिए सत्यनिष्ठा को ही वह प्राप्त होता है।

5.यथा नद्यः स्यन्दमानाः समुद्रे- स्तं गच्छन्ति नामरूपे विहाय ।

तथा विद्वान् नामरूपाद् विमुक्तः परात्परं पुरुषमुपैति दिव्यम् ॥

हिन्दी –

जिस प्रकार निरन्तर बहती हुई नदियाँ अपने नाम रूप को त्यागकर समुद्र में अस्त (विलीन) हो जाती हैं, उसी प्रकार विद्वान् नाम-रूप से मुक्त होकर परात्पर, अर्थात् अव्यक्त पुरुष को प्राप्त हो जाता है, अर्थात् अविद्याजन्न नाम-रूप से मुक्त होकर ब्रह्म में विलीन हो जाता है ।

 

6. वेदाहमेतं पुरुषं महान्तम्, आदित्यवर्णं तमसः परस्तात् ।

तमेव विदित्वाति मृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय ॥

हिन्दी –

मैं तमस अन्धकार, अर्थात् संसार के अविद्यारूप अंधकार को नाश करनेवाले सूर्यवर्ण दिव्य और महान पुरुष को जान लिया हूँ। उसे, अर्थात् उस दिव्य रूप ब्रह्म को जानकर अर्थात् उसे साक्षात्कार ही मृत्यु से लोग बचता है। उसके ज्ञान से ही लोग जरा-जन्म-मृत्यु इत्यादि सांसारिक कष्टों से जान पाता है । इस सिद्धान्त के अतिरिक्त अज्ञान रूप अंधकार से बचने का कोई दूसरा उपाय ही नहीं है।

 

(मौखिकः)

1.एकपदेन उत्तरं वदत –

प्रश्न

(क) हिरण्मयेन पात्रेण कस्य मुखम् अपिहितम् ?

उत्तर—सत्यस्य

 

प्रश्न

(ख) सत्यधर्माय प्राप्तये किम् अपावृणु ?

उत्तर—आच्छादनम्, आवरणम्

 

प्रश्न

(ग) ब्रह्मणः मुखं केन आच्छादितमस्ति ?

उत्तर—पात्रेण

 

प्रश्न

(घ) महतो महीयान् कः ?

उत्तर—ब्रह्मः

 

प्रश्न

(ङ) अणोः अणीयान् कः ?

उत्तर—ब्रह्मः

प्रश्न

(च) पृथिव्यादेः महत्परिमाणयुक्तात् पदार्थात् महत्तरः कः ?

उत्तर—ब्रह्मः

 

प्रश्न

(छ) कीदृश: पुरुष: निजेन्द्रियप्रसादात् आत्मनः महिमानं पश्यति शोकरहितश्च भवति ?

उत्तर—तमक्रतुः

 

प्रश्न

(ज) किं जयं प्राप्नोति ?

उत्तर—सत्यम्

 

 

प्रश्न

(झ) किं जयं न प्राप्नोति ?

उत्तर—नानृतम्

 

प्रश्न

(ञ) का नाम रूपञ्च विहाय समुद्रे अस्तं गच्छन्ति ?

उत्तर—नद्यः

 

2.एतेषाम् पद्यानाम् प्रथम चरणं मौखिकरूपेण पूरवत –

(क) हिरण्मयेन – पात्रेण सत्यस्यपिहितं मुखम |

(ख) अणोरणीयान् – महतो महीयान आत्मस्य जन्तोनी गुहायाम |

(ग)  सत्यमेव जयते – नानृतम सत्येन पन्था विततो देवया |

(घ) यथा नद्यः – स्यन्दमाना : समुद्रे दस्तं गछन्ति नामरुपे विहाय |

(ङ) वेदाहमेतं– पुरुषं महानतम आदित्यवर्णः तमसः परस्तात |

3.एतेषां पदानाम् अर्थ वदत –

उत्तर—

अपिहितम् – ढका हुआ

सत्यधर्माय – सत्यधर्मवान के लिए

अणोरणीयान् – सूक्ष्म से सूक्ष्म

अक्रतुः – क्रम बंधन से मुक्त

वीतशोकः – शोकरहित

विततः – विस्तार होता है

देवयानः- देवता को

आप्तकामाः – उन्होंने अपनी इच्छा पूरी की है

स्यन्दमानाः- जाती हुई

अयनाय – अयनाय

 

4.स्वस्मृत्या काञ्चित् संस्कृतप्रार्थनां श्रावयत ।

(लिखितः )

एकपदेन उत्तरं लिखत

(क) सत्यस्य मुखं केन पात्रेण अपिहितम् अस्ति ?

उत्तर—हिरण्मयेन पात्रेण

 

(ख) पूषा कस्मै सत्यस्य मुखम् अपावृणुयात् ?

उत्तर—आदित्यमण्डलस्य

 

(ग) कः महतो महीयान् अस्ति ?

उत्तर—ब्रह्मः

 

(घ) किं जयते ?

उत्तर—सत्यम्

 

(ङ) देवयानः पन्थाः केन विततः अस्ति ?

उत्तर—सत्यधर्मवानेन

 

(च) नद्यः के विहाय समुद्रे अस्तं गच्छन्ति ?

उत्तर—नामरूपेविहाय

 

(छ) साधक: पुरुषं विदित्वा कम् अत्येति ?

उत्तर— मृत्युम्

 

2.अधोलिखितम् उदाहरणम् अनुसृत्य प्रदत्तप्रश्नानाम् उत्तराणि पूर्णवाक्येन लिखत – यथा –

प्रश्न :- सत्यस्य मुखं केन अपिहितम् अस्ति ?

उत्तरं – सत्यस्य मुखं हिरण्मयेन पात्रेण अपिहितम् अस्ति ।

 

प्रश्न

(क) कस्य गुहायाम् अणोः अणीयान् आत्मा निहितः अस्ति ?

उत्तर – प्राणिजातस्य गुहायां हृदये अणोः अणीयान् आत्मा निहितः अस्ति ।

 

प्रश्न

(ख) विद्वान् कस्मात् विमुक्तो भूत्वा परात्परं पुरुषम् उपैति ?

उत्तर – विद्वान् नामरूपाद् विमुक्तो भूत्वा परात्परं पुरुषं उपैति ।

 

प्रश्न
(ग). आप्तकामा ऋषयः केन पथा सत्यं प्राप्नुवन्ति ?
उत्तर – आप्तकामा ऋषयः देवयानादव्यो पथ सत्यं प्राप्नुवन्ति ।

 

प्रश्न

(घ) विद्वान् कीदृशं पुरुषं वेत्ति ?

उत्तरं – विद्वान् नामरूपाद् विमुक्तः परात्परं पुरुषं वेत्ति

 

3.सन्धि-विच्छेदं कुरुत –

(क) कस्यापिहितम् :- – कस्य + अपिहितम

(ख) अणोरणीयान् :- अणोः + अणियान

(ग) जन्तोर्निहितः :- जन्तो: + निहित:

(घ) ह्याप्तकामाः :- हि + आप्राप्तकामा

(ङ) उपैति :- उप + एति

4.प्रकृति-प्रत्ययनिदर्शनं कुरुत –

(क) अपिहितम् –

(ख) निहित: –

(ग) विमुक्तः –

(घ) विहाय –

(ङ) विततः –

5.समास विग्रहं कुरुत

(क) अनृतम्-  = न कृतम् इति – नञ्‌ समास

(ख) आदित्यवर्णम् = आदित्य वर्णं यस्य.

(ग) वीतशोकः

(घ) देवयानः

(ङ) नान्यः

6.रिक्तस्थानानि पूरयत –

प्रश्न

(क)………………… सत्यस्यापिहितं मुखम् ।

उत्तर— हिरण्यमेन पात्रेण |

 

प्रश्न

(ख) ………………….  महतो महीयान् ।

उत्तर—अणोरणीयान्,|

 

प्रश्न

(ग) ………………….. नानृतम्।

उत्तर— सत्यमेव जयते |

 

प्रश्न

(घ) ……………………व्यथा स्यन्दमानाः समुद्रे ।

उत्तर—यथा नद्यः स्यन्दमानाः |

 

प्रश्न

(ङ) …………………..तमेव मृत्युमेति ।

उत्तर— तमेव विदित्वाति |

 

7.अधोनिर्दिष्टानां पदानां स्ववाक्येषु प्रयोगं कुरुत –

उत्तर—

(क) . सत्यम :- सत्यमेव जयते नानृतम ।

(ख). सत्यस्य :- सत्यस्य मुखम हिरणमयेन पात्रेण अपिहितम

(ग). गच्छनिः :- ते गृहम गच्छन्ति ।

(घ). विमुक्तः : – विद्वान नाम रुपाद विमुक्तः

(ङ). अन्यः :- अन्यः पन्था अयनाय न विदयते ।

 

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