गीताऽमृतम् | devvani sanskrit ch 9 | class 7

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गीताऽमृतम् | devvani sanskrit ch 9 | class 7

गीताऽमृतम् devvani sanskrit ch 9 class 7

संस्कृत में – श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः ।

ज्ञानं लब्धवा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥

हिंदी में-जिसके पास विश्वास है, जो उसके प्रति समर्पित है और जिसने अपनी इंद्रियों को वश में कर लिया है, उसे ज्ञान प्राप्त होता है। ज्ञान प्राप्त करके वह तुरंत परम शांति को प्राप्त कर लेता है।

संस्कृत में – न हि ज्ञानने सदृशं पवित्रमिह विद्यते।

तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति ॥

हिंदी में-क्योंकि यहां ज्ञान के समान पवित्र कुछ भी नहीं है। जिसने योग को सिद्ध कर लिया है वह समय आने पर स्वयं में यही पाता है।

 

संस्कृत में – न जायते म्रियते वा कदाचित् नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।

अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो, न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥

हिंदी में-वह न कभी जन्मता है, न कभी मरता है, न कभी हुआ है, न कभी होगा, न वह अजन्मा, नित्य, नित्य, प्राचीन है; शरीर के मारे जाने पर वह मारा नहीं जाता।

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संस्कृत में – तेजः क्षमाः धृतिः शौचम् अद्रोहो नातिमानिता।

भवन्ति सम्पदं दैवीम् अभिजातस्य भारत ॥

हिंदी में-प्रतिभा, क्षमा, धैर्य, पवित्रता, गैर-विश्वासघात, और अहंकार नहीं। हे भरत के वंशज, जो लोग इस संसार में जन्म लेते हैं वे दैवी संपदा का आनंद लेते हैं।

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संस्कृत में – श्रेयान् स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।

स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः ॥

हिंदी में-अपने द्वारा किये गये दूसरों के धर्म से श्रेष्ठ है, अपना धर्म, सदाचार से रहित। अपने धर्म में मरना बेहतर है, लेकिन दूसरों का धर्म भयावह है।

 

संस्कृत में – अशंसयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् ।

अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते॥

हिंदी में-हे महाबाहो, मैं आपकी स्तुति नहीं करता, क्योंकि मेरा मन अनियंत्रित और अस्थिर है। लेकिन हे अर्जुन, यह अभ्यास और त्याग से प्राप्त होता है।

 

संस्कृत में – त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः ।

कामक्रोधस्तथा लोभः तस्मादेतत् त्रयं त्यजेत् ॥

हिंदी में-नरक के तीन प्रकार के द्वार हैं, अर्थात स्वयं का विनाश। काम, क्रोध और लोभ, इसलिए इन तीनों का त्याग कर देना चाहिए।

संस्कृत में – यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमर्धस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

हिंदी में- इस श्लोक में श्री कृष्ण कहते हैं “जब-जब इस पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है, विनाश का कार्य होता है और अधर्म आगे बढ़ता है, तब-तब मैं इस पृथ्वी पर आता हूँ और इस पृथ्वी पर अवतार लेता हूँ।”

संस्कृत में – परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।

धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ॥

हिंदी में- यह धर्मियों के उद्धार और दुष्टों के विनाश के लिए है। मैं हर युग में धार्मिक सिद्धांतों की स्थापना के लिए प्रकट होता हूं।’

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संकलनात्मकं मूल्याङ्कनम्

अभ्यासः

१. श्लोकानां सस्वरवाचनं कुरुत । [ श्लोक को स्वयं पढ़ें. ]

उत्तर – आप स्वयं करें ।

२. एकपदेन उत्तरं लिखत । [ उत्तर एक शब्द में लिखिए ]

(क) कः ज्ञानं लभते ? [ ज्ञान किसको मिलता है? ]

उत्तर – श्रद्धावाल्लभते ज्ञानं [ विश्वास से ज्ञान प्राप्त होता है ]

(ख) केन सदृशं पवित्रमिह न विद्यते? [ यहाँ पवित्र के समान कौन है? ]

उत्तर – ज्ञानेन

(ग) क: दुर्निग्रहः अस्ति?

उत्तर – मनः

(घ) नरकस्य द्वारं किम्?  [ नरक का द्वार क्या है? ]

उत्तर – नाशनमात्मनः [ स्वयं का विनाश ]

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३. प्रश्नानामुत्तराणि लिखत – [ प्रश्नों के उत्तर लिखिए ]

(क) सः कं लब्धवा परां शान्तिमचिरेण अधिगच्छति?  [ वह किसे ढूंढकर शीघ्र ही परम शांति प्राप्त कर लेता है? ]

उत्तर – ज्ञानं लब्धवा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति [ ज्ञान प्राप्त करके वह तुरंत परम शांति को प्राप्त कर लेता है। ]

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(ख) हन्यमाने शरीरे कः न हन्यते? [ मारे गए शरीर में कौन नहीं मारा जाता? ]

उत्तर – हन्यमाने शरीर आत्मां न हन्यतें [ जब शरीर मारा जाता है तो आत्मा नहीं मरती ]

(ग) कस्मिन् निधनं श्रेयः? [ कैसा मरना बेहतर है? ]

उत्तर – स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो [ दूसरों के धर्म में मरने से बेहतर है अपने धर्म में मरना ]

(घ) दुर्निग्रहः मनो केन गृह्यते? [ अनियंत्रित मन को कौन वश में करता है? ]

उत्तर – अभ्यासेन कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते [ अभ्यास और त्याग से अनियंत्रित मन को कौन वश में किया जा सकता है ]

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४. रिक्तस्थानानि पूरयत – [ रिक्त स्थान भरें ]

(क)       श्रद्धावान् लभते ज्ञानं …………………..संयतेन्द्रियः ।

             ज्ञानं लब्धवा परां ………………….अधिगच्छति।।

उत्तर – श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः ।

           ज्ञानं लब्धवा परां शान्तिमचिरेणा  अधिगच्छति॥

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(ख)       त्रिविधं नरकस्येदं ……………….. नाशनमात्मनः।

            कामः लोभः ……………………………. त्र्यं त्यजेत्।।

उत्तर –  त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः ।

            कामक्रोधस्तथा लोभः तस्मादेतत् त्रयं त्यजेत् ॥

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(ग)      यदा यदा हि ……………………….. भारत ।

          अभ्युत्थानमधर्मस्य ……………………. सृजाम्यहम्।।

उत्तर – यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

          अभ्युत्थानमर्धस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

(घ)     परित्राणाय………………. दुष्कृताम्।

          धर्म संस्थापनार्थाय ……………….. युगे-युगे ।।

उत्तर – परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।

          धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ॥

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५. श्लोकांशान् मेलयत – [ श्लोक का मिलान करें ]

यथा –

यदा यदा हि धर्मस्य                                                 ग्लानिर्भवति भारत।

(क)

धर्म संस्थापनार्थाय–

कामः क्रोधस्तथालोभः

अभ्यासेन तु कौन्तेय

ज्ञानं लब्ध्वा परां-

नहि ज्ञानने सदृशं

अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो

तेजः क्षमा धृतिः शौचं

(ख)

पवित्रमिह विद्यते ।

अद्रोहो नातिमानिता।

सम्भवामि युगे युगे।

वैराग्येण च गृह्यते।

तस्मादेतत् त्रयम् त्यजेत्।

शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ।

न हन्यते हन्यमाने शरीरे ।

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उत्तर –

(क)                                                                                   (ख)

(i) धर्म संस्थापनार्थाय-                                   (i)  सम्भवामि युगे युगे।

(ii) कामः क्रोधस्तथालोभः                              (ii)  तस्मादेतत् त्रयम् त्यजेत्।

(iii) अभ्यासेन तु कौन्तेय                                (iii) वैराग्येण च गृह्यते।

(iv) ज्ञानं लब्ध्वा परां-                                     (iv) शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ।

(v) नहि ज्ञानने सदृशं                                      (v) पवित्रमिह विद्यते।

(vi) अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो                    (vi)  न हन्यते हन्यमाने शरीरे ।

(vii) तेजः क्षमा धृतिः शौचं                               (vii)  अद्रोहो नातिमानिता।

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संकलनात्मकं मूल्याङ्कनम्

६. पदानां समानार्थकपदानि लिखत – [ पदों के पर्यायवाची शब्द लिखिए ]

(क) पवित्रम् – साफ, स्वच्छ, निर्मल, उज्ज्वल, शुद्ध, निर्दोष ।

(ख) शौचम् – मल त्याग, मलोत्सर्ग, शौंच, शौच कर्म

(ग) तेज: – चमक, प्रकाश, जोर, बल, प्रताप, प्रभाव।

(घ) क्रोधः -रोष, कोप, अमर्ष, गुस्सा, रूठ, क्रुद्ध।

(ङ) कामः – कामदेव, अनंग, अतनु, आत्मज, आत्मभू, कंदर्प, ।

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७. योग्यताविस्तारः

१. महाभारतस्य कस्मिन् पर्वे गीतायाः वर्णनम् अस्ति ? [ महाभारत के किस पर्व में गीता का वर्णन है? ]

उत्तर – महाभारतस्य भीष्मपर्वस्य भागः अस्ति । [ यह महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है। ]

शब्दार्थाः

श्रद्धावान् – श्रद्धावाला

तत्पर: – साधन परायण

लब्धवा – प्राप्त करके

अचिरेण – बिना विलम्ब के

ज्ञानेन सदृशं – ज्ञान के समान

जायते – जन्म लेता

भविता – होगा

हन्यते – मारा जाता है।

सम्पदं – सम्पत्ति

असंशयं – निःसन्देह

तस्मात् – इस कारण से

लभते – प्राप्त करता है

संयतेन्द्रियः – संयमित जीवनवाला

अधिगच्छति – प्राप्त हो जाता है

विन्दति – प्राप्त करता है

म्रियते –  मरता है

भूयःपुनः – अजो-अजन्मा

अतिमानिता – अत्यन्त घमण्डवाला

अभिजातस्य – प्राप्त हुआ

दुर्निग्रह- कठिनता से वश में

सम्भवामि – प्रकट होता हूँ।

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प्रथमः पाठः ⇒ मर्यादापुरुषोत्तमः श्रीरामः

द्वितीयः पाठः ⇒ चतुरः वानरः

तृतीयः पाठः ⇒ बकस्य प्रतिकारः

चतुर्थः पाठः ⇒ चत्वारि धामानि

पञ्चमः पाठः ⇒ गुरुगोविन्द सिंहः

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