sangati per nibandh | eassy on consistency
संगति पर निबंध
sangati per nibandh | eassy on consistency
sangati per nibandh | eassy on consistency
संगति पर निबंध
संगति का अर्थ होता है साहचर्य या साथ। मनुष्य अपने दैनिक जीवन में जिसके साथ अधिक से अधिक समय व्यतीत करता है, वही उसकी संगति कहलाती है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, वह बिना संगति के जी नहीं सकता। अब यह एक विचारणीय प्रश्न है कि मानव किसके साथ संगति करे और किसके साथ न करे। क्योंकि संगति से ही गुण और दोष उत्पन्न होते है “संसर्ग ज: दोषगुणा: भवन्ति।“ एक अंग्रेज चिन्तक का विचार है -किसी व्यक्ति की पहचान उसकी संगति से होती है।
संगति दो प्रकार की होती है- सुसंगति और कुसंगति। सज्जनों की संगति सुसंगति कहलाती है और दूर्जनों की संगति कुसंगति कहलाती है। सुसंगति मनुष्य को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करती है और कुसंगति + कुमार्ग की ओर। इसलिए साधुओं की संगति में रहने वाले साधु बनते है और दुष्टो की संगती में रहने वाले दुष्ट। गोस्वामी जी लिखते है –
गगन चढ़ई जर पवन प्रसंगा।
कीचहिं मिलइ नीच जल संगा।।
आर्थात् पवन की संगति से वसुधा-वद्य पर आच्छादित धूल कण आकाश की ऊंचाई छू लेता है। परन्तु वही रज- कण वर्षा जल के संसर्ग से पंक में परिवर्तित हो जाता है। स्वाति नक्षत्र की बूंद संगति के अनुरूप ही स्वरूपग्रहण करती है! यथाः कदली में कपूर, सीप में मोती,भुजंग में विष।
जैसी संगति बैठिये, वैसी ही गुण दीन ।
कदली, सीप, भुजंग, मुख, स्वाति एक गुण तीन।।
सुसंगति का मानव-जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसके प्रभाव से शठ को भी सुधरते पाया गया है। जैसे पारस के स्पर्श से काला लोहा भी स्वर्ण बन जाता है। गोस्वामी जी लिखते हैं-
सठ सुध रहीं संतसंगति पाई।
पारस परसी कुधातु सुहाई।।
इसी प्रकार कंचन के संसर्ग में कांच भी मरकर मणि की आभा प्राप्त कर लेता है और कीट भी सुमन के संसर्ग से देवताओं के शीश पर चढ़ जाते हैं।
कायः कंचन संसर्गाद्धते मारकतीं धुतिम्।
कीटो जपि सुमनः संगादारो हित सतां शिरः।।
सुसंगति के प्रभाव से सम्बन्धित कई उदाहरण हमारे इतिहास के पन्नों पर स्वर्णाक्षरों में अंकित हैं। कृष्ण की संगति पाकर अर्जुन महाभारत-विजेता बना। हनुमान, विभीषण, सुग्रीव आदि मार्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम की सुसंगति पाकर पूज्य बन गए। भक्त शिरोमणि नारद की संगति पाकर वाल्मीकि डाकू से आदिकवि बन गए। ठीक उसी प्रकार महामानव बुद्ध की संगति पाकर डाकू अंगुलिमाल सद्गति को प्राप्त हुआ। सन्त रामकृष्ण परमहंस की संगति पाकर नरेंद्र नामक युवक स्वामी विवेकानन्द बन गया। चाणक्य की संगति पाकर चन्द्रगुप्त भारत का सम्राट बन गया।ठीक इसके विपरीत कुसंगति से जीवन में हानि ही हानि है। मामा शकुनि के संसर्ग में रहकर दुर्योधन अपने ही कुल का नाश कर बैठा। समुद्र लंका से जुड़ा हुआ था। अतः रावण के साथ-साथ समुद्र को भी राम का कोपभाजन बनना पड़ा-
बसि कुसंग चाहत कुशल यह रहीम अफसोस।
महिमा घटी समुद्र की रावण बसा पड़ोस।।
कहां दूध और कहां मदिरा। लेकिन यही दूध कलारिन के हाथ लग जाए तो उसे लोग मदिरा ही समझते हैं-
रहिमन नीच न संग बसि, लगत कलंकन काहि।
दूधकलारिन हाथ लखि, मद समुझहिं सब ताहि।।
अतः हमारी समग्र प्रगति की कुंजियों में एक है सुसंगति। इससे लौकिक एवं पारलौकिक दोनों उन्नयन सम्भव हैं। इसलिए हमें अपने जीवन के क्षण-क्षण को सुसंगति में बिताना चाहिए-
एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध |
कबीर संगत साधु की, कटै कोटि अपराध ||
एक पल आधा पल या आधे का भी आधा पल ही संतों की अच्छी संगत करने से मन के करोडों दोष मिट जाते हैं।
sangati per nibandh
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