1857 का विद्रोह | class 8th chapter 6 scert pdf notes

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1857 का विद्रोह

भारतीय सैनिकों की शिकायतें

  • अंग्रेजो सेना में काम करने वाले भारतीय सिपाही खुश नहीं थे। उन्हें अंग्रेज सिपाही की अपेक्षा बहुत कम वेतन मिलता था जबकि काम वे बराबर ही करते थे। अंग्रेजो सेना में एक भारतीय पैदल सिपाही को 7 रूपया और घुड़सवार को 27 रूपया मिलते थे।
  • भारतीय सिपाही चाहे कितना भी अच्छा काम करे उन्हें हवलदार या सुवेदार से ऊँचा पद नही दिया जाता था।
  • भारत में अंग्रेजी सैनिकों के बीच भारतीय सिपाहि 87% था, लेकिन उन्हें अंग्रेजी सैनिकों से निम्न श्रेणी का माना जाता था।
  • लॉर्ड कैनिंग ने वर्ष 1856 में एक नया कानून बनाया जिसमें कहा गया कि कोई भी भारतीय सैनिको को दूसरे देश के साथ होने वाले युध्दो के लिए समुद्र पार भी जाना होगा ऐसा प्रावधान किया गया। हिंदू धर्म में उस समय समुद्र पार करके दूसरे देश में जाना पाप माना जाता था।

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तात्कालिक कारण

  • एक अफवाह यह फैल गई कि नए ‘एनफिल्ड’ राइफलों के जो कारतूस होते थे, उस पर कागज का एक मोटा खोल चढा होता था। खोल बनाने में गाय और सूअर की चर्बी का इस्तेमाल किया जाता था।

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  • सिपाहियों को इन राइफलों में भरने से पहले कारतूस को दाँत से काट कर हटाना पड़ता था। इस बात ने हिंदू और मुस्लमान दोनों सैनिको ने उनका इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया।

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विद्रोह का आरंभ

  • मार्च 1857 में बैरकपुर छावनि के एक युवा सिपाहि मंगल पांडे ने नए कारतुस और राइफल को लेने से इन्कार कर दिया। दबाब डालने पर उसने अपने अफसर पर हमला कर दिया था।

 

  • मंगल पांडे को 8 अप्रैल, 1857 ई. को मंगल पांडे को फाँसी की सज़ा दे दी गई।

 

  • 9 मई, 1857 को मेरठ में 90 भारतीय सैनिकों ने नए एनफिल्ड राइफल लेने से इन्कार कर दिया। उन्हें भी गिरफतार कर लिया गया और दस वर्ष की सज़ा दी गई।

 

  • 10 मई, 1857 को भारतीय सैनिकों ने मेरठ के पुरी छावनी में विद्रोह कर दिया। उन्होंने अपने साथियों को छुड़ाया अपने अफसरो की हत्या कर दी एव शस्त्रागार लूट लिये । उन्होंने छावनी से निकल कर मेरठ शहर में भी लूट-पाट की। सैनिकों ने सरकारी खजाने को भी अपना निशान बनाया । फिर वे दिल्ली की ओर निकल गए। दिल्ली पहुँच कर उन्होंने शहर में लूट-पाट मचाते हुए अंग्रेजी सरकार के प्रशासनिक केन्द्रों को ध्वस्त कर दिया | अंग्रेजो के नियंत्रण से दिल्ली शहर निकल गया। इन विद्रोही सिपाहियों ने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को अपना नेता घोषित किया।

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विद्रोह कहाँ से और किसने किया

भारतीय नायक (विद्रोह के) केन्द्र (विद्रोह का) ब्रिटिश नायक (विद्रोह दबाने के)

बहादुर शाह जफर एव जफर बख्ता  खाँ (सैन्य नेतृत्व)

दिल्ली

 

निकलसन और हडसन

 

नाना साहेब एव तात्या टोपे

कानपुर

 

सर कोलिन कैंपबेल

बेगम हजरत महल

 

लखनऊ

 

सर कोलिन कैंपबेल

 

लक्ष्मी बाई एव तात्या टोपे

 

झाँसी और ग्वालियर

 

लियाकत अली

 

इलाहाबाद और बनारस

 

कर्नल निल

 

कुँवर सिंह

 

जगदीशपुर (बिहार)

 

विलियम टेलर और मेजर विसेट आयर

 

खान बहादुर खाँ

 

बरेली

 

सर कोलिन कैंपबेल

 

मौलवी अहमद उल्ला

 

फैजाबाद

 

 

अजीमुल्ला

 

फतहेपुर

 

जनरल रेनर्ड

 

 

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विद्रोह कानपुर, लखनऊ, झाँसी, ग्वालियर, इलाहाबाद, बनारस, बरेली, फैजाबाद, फतहेपुर, बिहार इत्यादि जगह से हो रहा था।

कानपुर कानपुर से विद्रोह का नेतृत्व पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहब ने किया था। क्योंकि अंग्रेज ने पेंशन बन्द कर दिया था ।

लखनऊ अवध की राजधानी लखनऊ थी । अवध के नवाब वाजिद अली शाह की दूसरी पत्नी बेगम हज़रत महल थीं । अवध के पूर्व राजा बेगम हज़रत महल ने विद्रोह का नेतृत्व किया। क्योंकि उनका राज्य अवध अंग्रेजो ने हड़प लिया था ।

झाँसी झाँसी से झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने विद्रोहियों का नेतृत्व किया। क्योंकि अंग्रेज़ों ने उनके दत्तक पुत्र को झाँसी के सिंहासन पर बैठाने से इनकार कर दिया।

ग्वालियर ग्वालियर से झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई ने विद्रोहियों का नेतृत्व किया और नाना साहेब के सेनापति तात्या टोपे के साथ मिलकर उन्होंने ग्वालियर तक कब्ज़ा कर लिया। क्योंकि नाना साहेब के अंग्रेज ने पेंशन बन्द कर दिया था ।

इलाहाबाद इलाहाबाद से इस विद्रोह का नेतृत्व लियाकत अली ने किया ।

बनारस बनारस से इस विद्रोह का नेतृत्व लियाकत अली ने किया ।

बिहार बिहार के आरा के पास स्थित जगदीशपुर से विद्रोह का नेतृत्व कुंवर सिंह ने किया । क्योंकि वें जगदीशपुर के जमिन्दार थे । लेकिन अंग्रेजा ने उनकि जमिन्दारी छिन लि थी ।

बरेली बरेली से इस विद्रोह का नेतृत्व खान बहादुर खाँ ने किया ।

फैजाबाद- फैजाबाद से इस विद्रोह का नेतृत्व मौलवी अहमद उल्ला ने किया ।

फतहपुर फतहपुर से इस विद्रोह का नेतृत्व अजीमुल्ला ने किया ।

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1857 के कांती के बाद भारत के शासन प्रणली में क्या क्या बदलाव हुए।

उत्तर-1857 के क्रांती के बाद 1 नवम्बर 1858 ई. को इंगलैंड कि महारानी का एक घोषणा पत्र आया जिसे लार्ड कैनिंग द्वारा इलाहाबाद में पढ़ें निम्नलिखित थे:-

 

 

 

  • 1857 के क्रांति के बादा अंग्रेजो राज्य पर ने भारतीय शासक से वादा किया कि अब कोई नया राज्य पर अंग्रेज सरकार कब्जा नही करेगा।

 

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