Bihar Board class 9th ch 1 biology जीवन की मौलिक इकाई
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जीवन की मौलिक इकाई
कोशिका(Cell): कोशिका शरीर की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई को कोशिका कहते है|
कोशिकाओं की संख्या के आधार पर कोशिका के दो प्रकार होते हैं:
1.एककोशिकीय
2.बहुकोशिकीय
1.एककोशिकीय: वे जीव जो एक ही कोशिका के होते है, वे एक कोशिकीय जीव कहलाते है।
उदाहरण – अमीबा, पैरामिशियम, बैक्टीरिया (जीवाणु) आदि ।
2.बहुकोशिकीय: वे जीव जो अनेक कोशिकाओं के होता हैं, वें बहुकोशिकीय जीव कहलाते है।
उदाहरण – फंजाई पादप , मनुष्य एवं अन्य जन्तु आदि ।
कोशिका की खोज:
(i) कोशिकाओं का वास्तविक ज्ञान माइक्रोस्कोप (सूक्ष्मदर्शी) के आविष्कार के बाद ही प्राप्त हो सका।
(ii) सर्वप्रथम 1665 में रॉबर्ट हूक (Robert Hooke) नामक एक अँगरेज वैज्ञानिक ने माइक्रोस्कोप का निर्माण किया। हूक ने अपने बनाए माइक्रोस्कोप में कॉर्क (cork) की एक पतली काट में अनेक सूक्ष्म, मोटी भित्तिवाली, मधुमक्खी की छत्ते जैसी कोठरियाँ देखीं। इन कोठरियों को रॉबर्ट हूक ने सेल (cell) का नाम दिया।
(iii) कोशिका’ का अंग्रेजी शब्द सेल (Cell) लैटिन भाषा के ‘सेल्युला’ शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ ‘छोटा कमरा’ है।
(iv) लिउवेनहोएक (Leeuwenhoek) नामक एक डच वैज्ञानिक द्वारा माइक्रोस्कोप की लेंस व्यवस्था संशोधित होने के पश्चात कोशिका का अध्ययन आगे बढ़ा। सर्वप्रथम 1674 में उन्होंने अपने उन्नत माइक्रोस्कोप में स्वतंत्र कोशिकाओं जैसे जीवाणु, प्रोटोजोआ आदि को देखा।
(v) 1831 में रॉबर्ट ब्राउन (Robert Brown) नामक एक वैज्ञानिक ने बताया कि प्रत्येक कोशिका के केंद्र में एक गोलाकार रचना होती है। इसे ब्राउन ने केंद्रक (nucleus) नाम दिया।
(vi) जे. ई. पुरकिंजे (Purkinje) ने 1839 में कोशिका के अंदर पाए जानेवाले अर्धतरल, दानेदार सजीव पदार्थ को प्रोटोप्लाज्म या जीवद्रव्य नाम दिया।
(vii)1838 में एक वनस्पतिवैज्ञानिक एम श्लाइडेन (Schleiden) ने कहा कि पादपों का शरीर सूक्ष्म कोशिकाओं का बना होता है।
(viii) 1839 में प्रसिद्ध प्राणिविज्ञानी टी श्वान (Schwann) ने बताया कि जंतु का शरीर भी सूक्ष्म कोशिकाओं का बना है।
(ix) दो जर्मन वैज्ञानिकों एम श्लाइडेन एवं टी श्वान ने अपने अध्ययन के आधार पर एक मत का प्रतिपादन किया। इसे कोशिका सिद्धांत कहते हैं। कोशिका सिद्धांत में उन्होंने यह बात व्यक्त की कि कोशिका शरीर की संरचनात्मक इकाई है।
(x)1855 में विरचो (Virchow) ने बताया कि नई कोशिकाओं का निर्माण पहले से मौजूद कोशिकाओं से होता है।
(xi) मैक्स शुल्ज (Max Schultze) ने 1861 में बताया कि कोशिका प्रोटोप्लाज्म का एक पिंड है, जिसमें एक केंद्रक होता है। इस कथन को प्रोटोप्लाज्म मतवाद (protoplasm theory) कहते हैं।
(xii) 1884 में स्ट्रासबर्गर (Strasburger) ने बताया कि केंद्रक पैतृक लक्षणों की वंशागति में भाग लेता है।
(xiii) 1931 में इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का आविष्कार एम० नॉल (M Knoll) एवं इ० रस्का (E Ruska) द्वारा हुआ, जिसकी सहायता से कोशिका एवं कोशिकांगों की रचनाओं का ज्ञान धीरे-धीरे बढ़ रहा है।
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केन्द्रक की रचना के आधार पर कोशिका के दो प्रकार होते है:
1.प्रोकैरियोटिक कोशिका
2.यूकैरियोटीक कोशिका
1.प्रोकैरियोटिक कोशिका: वैसी कोशिका जिसमें वास्तविक केंद्रक तथा केंद्रकझिल्ली नहीं होती है, उसे प्रोकैरियोटिक कोशिका कहते हैं, जैसे जीवाणु और सायनोबैक्टीरिया (cyanobacteria)।
2.यूकैरियोटीक कोशिका: वैसी कोशिका जिसमें वास्तविक केंद्रक तथा केंद्रकझिल्ली होती है, उसे यूकैरियोटिक कोशिका कहते हैं। साधारणतः यह सभी जंतुओं एवं पौधों में पाया जाता है।
प्रोकैरियोटिक कोशिका और यूकैरियोटिक कोशिका में अंतर लिखें|
उत्तर: प्रोकैरियोटिक कोशिका और यूकैरियोटिक कोशिका में निम्नलिखित होते है:
प्रोकैरियोटिक कोशिका
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यूकैरियोटिक कोशिका
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1. यह आद्य कोशिका है। इसका आकार प्रायः छोटा (1-10 µm) होता है।
2. वास्तविक केंद्रक अनुपस्थित
3. केवल जीवाणुओं (bacteria) एवं सायनोबैक्टीरिया में मौजूद
4. केंद्रिका (nucleolus) नहीं पाया जाता है।
5. केवल एक क्रोमोसोम पाया जाता है।
6. गॉल्जीकाय, माइटोकॉण्ड्रिया, अंतःप्रद्रव्यी जालिका (endoplasmic reticulum) नहीं पाए जाते हैं।
7. क्लोरोप्लास्ट (chloroplast) नहीं पाया जाता है।
8. कोशिका विभाजन विखंडन (fission) या मुकुलन (budding) द्वारा होता है।
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1.यह विकसित कोशिका है। इसका आकार प्रायः वड़ा (5-100 µm) होता है।
2.वास्तविक केंद्रक उपस्थित
3.सभी पादपों और जंतुओं में – मौजूद
4.केंद्रिका पाया जाता है।
5.अनेक क्रोमोसोम पाए जाते हैं।
6.गॉल्जीकाय, माइटोकॉण्ड्रिया,अंतःप्रद्रव्यी जालिका पाए जाते हैं।
7.क्लोरोप्लास्ट पादप कोशिकाओं में पाया जाता है।
8..कोशिका विभाजन माइटोसिस या मिऑसिस (mitosis or meiosis) द्वारा होता है।
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यूकैरियोटिक कोशिका की रचना को मुख्य रूप से तीन भागों में गया है:
- प्लाज्माझिल्ली या कोशिका झिल्ली (Plasma membrane or Cell membrane)
- कोशिका द्रव्य (Cytoplasm)
- केन्द्रक (Nucleus)
- प्लाज्माझिल्ली या कोशिका झिल्ली (Plasma membrane or Cell membrane): प्रत्येक जंतु कोशिका के सबसे बाहर चारों ओर एक बहुत पतली, मुलायम और लचीली झिल्ली होती है, जिसे कोशिकाझिल्ली या प्लाज्माझिल्ली या प्लाज्मा मेम्ब्रेन (plasma membrane) कहते हैं। यह झिल्ली जीवित और अर्द्धपारगम्य या सेमीपरमीएबुल होती है। अर्द्धपारगम्य का अर्थ है कि कुछ वस्तुएँ उसके आर-पार आसानी से आ-जा सकती हैं। चूँकि इस झिल्ली द्वारा कुछ ही पदार्थ अंदर तथा बाहर आ-जा सकते हैं सब पदार्थ नहीं, अतः इसको चयनात्मक पारगम्य झिल्ली (selectively permeable membrane) भी कहते हैं। इसमें किसी भी प्रकार का स्थूलन नहीं पाया जाता। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी (electron microscope) में यह एक दोहरी झिल्ली दिखाई पड़ती है जिसमें, बीच-बीच में, अनेक छिद्र मौजूद होते हैं। कोशिकाझिल्ली लिपिड और प्रोटीन की बनी होती है। इसमें दो परत प्रोटीन तथा इनके बीच में एक परत लिपिड का रहता है।
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कोशिका झिल्ली के निम्नलिखित कार्य हैं-
(i) यह एक सीमित झिल्ली का कार्य करती है।
(ii) यह कोशिका का एक निश्चित आकार बनाए रखने में सहायता करती है।
(iii) यह कोशिका को यांत्रिक सहारा (mechanical support) प्रदान करती है।
(iv) यह भिन्न-भिन्न प्रकार के अणुओं को बाहर निकलने एवं अंदर आने में नियंत्रण करती है।
(v) जंतु कोशिका में यह सीलिया, फ्लैजिला, माइक्रोभिलाई आदि के निर्माण में सहायक है|
कोशिकाभित्ति – पादप कोशिकाएँ चारों ओर से एक मोटे और कड़े आवरण द्वारा घिरी होती हैं। इसी आवरण को कोशिकाभित्ति कहते हैं। यह मुख्यतः सेल्यूलोज (cellulose) की बनी एवं पारगम्य होती है। सेल्यूलोज एक जटिल पदार्थ है जो कोशिकाओं को संरचनात्मक दृढ़ता प्रदान करता है। इसी के कारण कोशिकाभित्ति कड़ी और निर्जीव होती है। इसमें विभिन्न प्रकार के स्थूलन (thickenings) मौजूद होते हैं तथा यह अर्द्धपारगम्य नहीं होती।
कोशिकाभित्ति के निम्नलिखित कार्य हैं-
(i) यह कोशिका को निश्चित रूप प्रदान करती है।
(ii) यह कोशिका को सुरक्षा और सहारा भी प्रदान करती है।
(iii) यह कोशिकाझिल्ली की रक्षा करती है।
(iv) यह कोशिका को सूखने से बचाता है।
- कोशिका द्रव्य (Cytoplasm): कोशिकाभित्ति एवं केंद्रक के बीच एक बहुत ही गाढ़ा, पारभासी (translucent) एवं चिपचिपा (viscous) पदार्थ होता है, उसे कोशिकाद्रव्य या साइटोप्लाज्म (cytoplasm) कहते हैं। इसमें अनेक अकार्बनिक पदार्थ, जैसे खनिज लवण और जल तथा कार्बनिक पदार्थ, जैसे कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन आदि होते हैं, जो निर्जीव पदार्थ हैं।
यह समरूप या समांगी पदार्थ (homogenous matter) नहीं होता, वरन इसमें अनेक रचनाएँ उपस्थित होती हैं, जिनके अलग-अलग कार्य होते हैं। इन रचनाओ या विशिष्ट घटकों को कोशिकांग (cell organelle) कहते हैं। यूकैरियोटिक कोशिकाओं में कोशिकांग झिल्लीयुक्त होते हैं जबकि प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में झिल्लीयुक्त अंगक नहीं होते हैं।
कोशिका अंगक(Cell organelles): विभिन्न प्रकार की उपापचयी क्रियाओं को दक्षतापूर्वक संपन्न करने के लिए कोशिका के भीतर कोशिकाद्रव्य में अनेक अलग-अलग प्रकार की छोटी-छोटी रचनाएँ बिखरी रहती हैं। ये रचनाएँ यूकैरियोटिक कोशिकाओं में झिल्लीयुक्त होती हैं। इन्हीं छोटी-छोटी संरचनाओं को कोशिका अंगक कहते है| और उनके सम्मिलित रूप को कोशिका अंग कहते है|
जैसे:
(i) अंतःप्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum)
(ii) गॉल्जी उपकरण (Golgi Apparatus)
(iii) राइबोसोम (Ribosome)
(iv) लाइसोसोम (Lysosome)
(v) माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria)
(vi) प्लैस्टिड या लवक (Plastid or Lavak )
(vii) रसधानी (Vacuole)
(viii) सेंट्रोसोम (Centrosomes)
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(i) अंतःप्रद्रव्यी जालिका या एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम – जंतु एवं पादप कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में अत्यंत सूक्ष्म, शाखित, झिल्लीदार, अनियमित नलिकाओं का घना जाल होता है। इस जालिका को अंतः प्रद्रव्यी जालिका या एण्डोप्लाज्मिक रेटिकुलम (endoplasmic reticulum or ER) कहते हैं। ये लाइपोप्रोटीन की बनी होती हैं और कोशिकाओं में समानांतर नलिकाओं के रूप में फैली रहती है। कोशिकाओं में इनका विस्तार कभी-कभी केंद्रक की बाह्य झिल्ली से प्लाज्माझिल्ली तक होता है।
अंतःप्रद्रव्यी जालिका दो प्रकार की होती हैं-
(i) चिकनी अंतः प्रद्रव्यी जालिका (smooth endoplasmic reticulum or SER)
(ii) खुरदरी अंतः प्रद्रव्यी जालिका (rough endoplasmic reticulum or RER)
(i) चिकनी अंतः प्रद्रव्यी जालिका (smooth endoplasmic reticulum or SER): वैसा अंतः प्रद्रव्यी जालिका जिसकी झिल्ली चिकनी (smooth) होती है, उसे चिकनी अंतः प्रद्रव्यी जालिका कहते है|
(ii) खुरदरी अंतः प्रद्रव्यी जालिका (rough endoplasmic reticulum or RER): वैसा अंतः प्रद्रव्यी जालिका जिसके बाहरी झिल्ली पर छोटे-छोटे कण रहते हैं, उसे खुरदरी अंतः प्रद्रव्यी जालिका कहते है|
अंतःप्रद्रव्यी जालिका के कार्य निम्नलिखित है-
(i) अंतः प्रद्रव्यी जालिका की झिल्लीनुमा नलिकाओं में तरल द्रव्य भरा रहता है, इसलिए ये कोशिकाद्रव्य में पदार्थों, मुख्यतः प्रोटीन का संचार करती है, अर्थात स्थित अंतः कोशिकीय परिवहन तंत्र का निर्माण करती हैं।
(ii) SER वसा एवं कोलेस्ट्रॉलसंश्लेषण में भाग लेती है। कुछ वसा प्रोटीन के साथ मिलकर कोशिकाझिल्ली बनाने में सहायता करते हैं। इस प्रक्रिया को झिल्ली जीवात्जनन (membrane biogenesis) कहा जाता है।
(iii) कोशिकाद्रव्य को यांत्रिक सहायता प्रदान करती है।
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(iv) कोशिका विभाजन के समय कोशिका प्लेट (cell plate) एवं केंद्रकझिल्ली के निर्माण में भाग लेती है।
कशेरुकी (जंतुओं का एक वर्ग) के यकृत कोशिकाओं में SER विष तथा दवा का निराविषीकरण (detoxification) करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते है।
(vi) केंद्रक से कोशिकाद्रव्य में आनुवंशिक पदार्थों (genetic materials) को जाने का पथ बनाती है।
(vii) इसके कारण ही कोशिका का सतही क्षेत्र (surface area) काफी बढ़ जाता है।
(viii) RER प्रोटीनसंश्लेषण में मदद करते हैं।
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(ii)गॉल्जी उपकरण या गॉल्जीकाय – सर्वप्रथम कैमिलो गॉल्जी (Camillo Golgi) ने 1898 में जंतु कोशिका में गॉल्जी उपकरण को देखा। साधारण सूक्ष्मदर्शी में देखने से यह मुड़ी हुई छड़ के गुच्छा के समान प्रतीत होता है। पादप कोशिका में ये कोशिकाद्रव्य में मुड़ी हुई छड़ के समान रचना बनाकर बिखरे रहते हैं जिन्हें डिक्टियोसोम (dictyosomes) कहते हैं। गॉल्जी उपकरण कुछ यूकैरियोटिक कोशिका, स्तनधारी की लाल रुधिरकणिका, जीवाणु एवं नील-हरित शैवालों यानी प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में नहीं पाए जाते हैं।
इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी में देखने पर ये चारों तरफ से झिल्ली से घिरी हुई अनेक समानांतर नलिकाओं या चपटी कुंडिकाओं या सिस्टर्नी (cisternae) के समूह की तरह होते हैं। कुंडिकाओं के सिरे पर छोटी-छोटी पुटिकाएँ या वेसिकल्स (vesicles) स्थित होती हैं। इसके अतिरिक्त नीचे की तरफ बड़ी-बड़ी रिक्तिकाएँ (vacuoles) पाई जाती है। गॉल्जीकाय की झिल्लियों का संपर्क ER की झिल्लियों से रहता है।
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गॉल्जी उपकरण या गॉल्जीकाय के कार्य निम्नलिखित है-
(i) ER संश्लेषित पदार्थों का संचयन, रूपांतरण तथा पैक कर कोशिका के बाहर और अंदर विभिन्न क्षेत्रों में भेजता है।
(ii) कोशिका का मुख्य स्रवण (secretory) अंगक है।
(iii) लाइसोसोम एवं पेरॉक्सिसोम के निर्माण में मदद करता है।
(iv) कुछ परिस्थितियों में इनमें सामान्य शक्कर से जटिल शक्कर का निर्माण होता है।
(v) पादप कोशिका विभाजन के समय कोशिका प्लेट (cell plate) बनाने में सहायक है।
(iii)राइबोसोम(Ribosome) – राइबोसोम (ribosome) ऐसे कण हैं जो केवल इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी में ही दिखाई पड़ते हैं। ये अंतः प्रद्रव्यी जालिका की झिल्लियों की सतह पर सटे होते हैं या फिर अकेले या गुच्छों में, कोशिकाद्रव्य में बिखरे रहते हैं। ऐसे राइबोसोमों को, जो गुच्छों में मिलते हैं, पॉलीराइबोसोम (polyribosomes) या पॉलीसोम (polysomes) कहते हैं। ये रचनाएँ प्रोटीन और आर०एन०ए० (एक प्रकार का न्यूक्लिक एसिड) की बनी होती हैं।
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राइबोसोम के कार्य – राइबोसोम में ही प्रोटीन का संश्लेषण होता है।
(iv)लाइसोसोम – यह बहुत सूक्ष्म कोशिकांग है जिसे सर्वप्रथम 1958 में क्रिश्चियन डि डवे (Christian de Duve) ने देखा। ये छोटी-छोटी पुटिकाओं (vesicles) के रूप में पाए जाते है जिनके चारों ओर एक पतली झिल्ली होती है। इसका आकार बहुत छोटा और थैली जैसा होता है। इसमें ऐसे एंजाइम्स होते हैं जिनमें जीवद्रव्य को घुला या नष्ट कर देने की क्षमता रहती है। कोशिकीय चयापचय (cellular metabolism) में व्यवधान के कारण जब कोशिका क्षतिग्रस्त हो जाती है, तो लाइसोसोम फट जाते हैं एवं इसमें मौजूद एंजाइम्स अपनी ही कोशिका को पाचित कर देते हैं। इसके परिणामस्वरूप कोशिका की मृत्यु हो जाती है। अतः, इसे आत्महत्या की थैली (suicide bag) भी कहा जाता है।
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लाइसोसोम के कार्य निम्नलिखित है-
(i) कोशिका में प्रवेश करनेवाले बड़े कणों एवं बाह्य पदार्थों का पाचन करता है।
(ii) अंतः कोशिकीय पदार्थों तथा अंगकों के टूटे-फूटे भागों को पाचित कर कोशिका को साफ करता है।
(iii) जीवाणु एवं वायरस से रक्षा करता है।
(iv) जिस कोशिका में रहता है उसी को आवश्यकतानुसार नष्ट करने का कार्य करता है।
(iv) माइटोकॉण्ड्रिया – माइटोकॉण्ड्रिया (mitochondria) कोशिका- द्रव्य में पाई जानेवाली बहुत महत्त्वपूर्ण रचनाएँ है, जो कोशिकाद्रव्य में बिखरी होती है। प्रकाश सूक्ष्मदर्शी में ये सूक्ष्म छड़ों या धागेनुमा, दानेदार या गोलाकार दिखाई देते हैं। पादप कोशिका में इसकी संख्या जंतु कोशिका से कम होती है। जंतु कोशिका में यह संख्या 10,000 या इससे ज्यादा भी हो सकती है। इनकी विस्तृत रचना का ज्ञान इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी से ही प्राप्त होता है।
प्रत्येक माइटोकॉण्ड्रिया एक बाहरी झिल्ली एवं एक अंतःझिल्ली से चारों ओर से घिरी होती है, तथा इसके बीच में एक तरलयुक्त गुहा होती है जिसे माइटोकॉण्ड्रियल गुहा (mitochondrial cavity) कहते हैं। माइटोकॉण्ड्रिया की भीतरी झिल्ली से अनेक प्रवर्ध निकलकर माइटोकॉण्ड्रियल गुहा मैट्रिक्स (matrix) में लटके रहते हैं, जिनको क्रिस्टी (cristae) कहते है तथा जिनमें कोशिकीय श्वसन से संबद्ध एंजाइम्स मौजूद होते है। इनमें अपना DNA तथा राइबोसोम्स होते है जिससे अपना कुछ प्रोटीन बनाने में ये सक्षम होते हैं।
Bihar Board class 9th ch 1 biology जीवन की मौलिक इकाई माइटोकॉण्ड्रिया के कार्य निम्नलिखित है-
(i) इनमें उपस्थित कोशिकीय श्वसन के एंजाइम्स के चलते भोजन का संपूर्ण ऑक्सीकरण होता है। इसके फलस्वरूप जीव के लिए ढेर सारी अति आवश्यक ऊर्जा मुक्त होती है। इसलिए, माइटोकॉण्ड्यिा को कोशिकीय ऊर्जागृह (powerhouse of the cell) कल जाता है।
(ii) यह ऊर्जा ATP (adenosine triphosphate) के रूप में जमा रहता है। कोशिका नए यौगिक के निर्माण के समय ATP में संचित ऊर्जा का इस्तेमाल करती है।
(iii) क्रिस्टी से अंदर की झिल्ली का सतह क्षेत्र बढ़ता है।
(v)लवक या प्लैस्टिड – लवक’ या प्लैस्टिड (plastid) सिर्फ पादप कोशिकाओं में पाए जाते हैं। ये कोशिकाद्रव्य में चारों ओर बिखरे रहते है। आकार में ये मुख्यतः अंडाकार, गोलाकार या तश्तरीनुमा (disc-shaped) दिखाई पड़ते हैं। इसके अलावे ये भिन्न-भिन्न आकार, जैसे तारानुमा, फीतानुमा, कुंडलाकार आदि भी हो सकते है।
लवक तीन प्रकार के होते हैं-
(i)अवर्णीलवक या ल्यूकोप्लास्ट (leucoplast)
(ii)वर्णीलवक या कोमोप्लास्ट (chromoplast)
(iii)हरितलवक या क्लोरोप्लास्ट (chloroplast)।
(i)अवर्णीलवक या ल्यूकोप्लास्ट (leucoplast): ल्यूकोप्लास्ट रंगहीन या श्वेत होते हैं।
(ii)वर्णीलवक या कोमोप्लास्ट (chromoplast) : क्रोमोप्लास्ट रंगीन प्लैस्टिड होते हैं।
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(iii) हरितलवक या क्लोरोप्लास्ट (chloroplast): पौधों के लिए क्लोरोप्लास्ट बहुत ही महत्त्वपूर्ण कोशिकीय संरचना है क्योंकि इसी में मौजूद वर्णकों के चलते प्रकाशसंश्लेषण की क्रिया संपन्न होती है। क्लोरोप्लास्ट में क्लोरोफिल के अतिरिक्त विभिन्न पीले तथा नारंगी रंग के वर्णक भी पाए जाते है। क्लोरोप्लास्ट या हरितलवक सूक्ष्म रचनाएँ हैं, जो दुहरी झिल्ली से घिरे रहते हैं। इनके भीतर तरलयुक्त गुहा होती है, जिसे स्ट्रोमा कहते हैं। इसमें महीन झिल्लीयुक्त रचनाएँ समानांतर फैली रहती हैं, जिन्हें स्ट्रोमा पट्टलिकाएँ या स्ट्रोमा लैमिली (stroma lamellae) कहते हैं। स्ट्रोमा लैमिली के बीच-बीच में चपटी और वृत्ताकार सूक्ष्म थैलियाँ, एक-के-ऊपर-एक चट्टे (stack) की तरह समूह में व्यवस्थित होते हैं। इन थैलीनुमा रचनाओं को थाइलाक्वायड्स (thylakoids) कहते हैं। प्रत्येक थाइलाक्वायड समूह को चैनम (granum) कहते हैं। प्रत्येक हरितलवक में 40 से 60 मैनम होते हैं। मैना एक-दूसरे से स्ट्रोमा पट्टलिकाओं द्वारा संयोजित होते हैं। प्रत्येक थाइलाक्वायड एकहरी महीन झिल्ली का बना होता है, जिसमें पर्णहरित तथा अन्य पदार्थ मौजूद होते हैं। प्लैस्टिड के अंदर माइटोकॉण्ड्रिया की तरह DNA तथा राइबोसोम भी पाए जाते हैं।
Bihar Board class 9th ch 1 biology जीवन की मौलिक इकाई लवक या प्लैस्टिड के कार्य निम्नलिखित है-
(i) ल्यूकोप्लास्ट मुख्यतः जड़ की कोशिकाओं में पाए जाते हैं और खाद्य संचय का कार्य करते हैं। इसमें स्टार्च, प्रोटीन तथा तेल जैसे पदार्थ संचित रहते हैं।
(ii) क्रोमोप्लास्ट फूलों और बीजों को विभिन्न रंग प्रदान करते हैं।
(iii) क्लोरोप्लास्ट मुख्यतः पत्तियों में पाया जाता है एवं भोजन-संश्लेषण में सहायक है।
रसधानी – कोशिका की रसधानियाँ (vacuoles) चारों ओर से एक झिल्ली से घिरी रहती हैं। इस झिल्ली को टोनोप्लास्ट (tonoplast) कहते हैं। रसधानियाँ छोटी या बड़ी हो सकती हैं। इन रसधानियों के भीतर ठोस अथवा तरल पदार्थ भरे रहते हैं। जंतु कोशिकाओं में रसधानियाँ छोटी होती हैं, जबकि पादप कोशिकाओं में ये बहुत बड़ी होती हैं। कुछ परिपक्व पादप कोशिकाओं के मध्य में एक बहुत बड़ी रसधानी होती है जिसकी
- केन्द्रक (Nucleus): कोशिकाद्रव्य के बीच एक बड़ी, गोल, गाढ़ी (dense) संरचना पाई जाती है जिसे केंद्रक या न्यूक्लियस (nucleus) कहते हैं। सभी जीवित कोशिकाओं में केंद्रक मौजूद रहता है। इसके चारों ओर दोहरे परत की एक झिल्ली रहती है जिसे केंद्रककला या केंद्रकझिल्ली (nuclear membrane) कहते हैं। इसमें अनेक केंद्रकछिद्र रहते हैं। इन छिद्रों के द्वारा केंद्रकद्रव्य एवं कोशिकाद्रव्य के बीच पदार्थों का आदान-प्रदान होता है। प्रायः एक केंद्रक हर जीवित कोशिका में पाया जाता है, लेकिन कुछ कोशिकाओं में एक से ज्यादा केंद्रक पाए जाते हैं|
कोशिका की संरचनाएँ:
प्याज की संरचना: विभिन्न आकार के प्याज में सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखने पर एक जैसी संरचनाएँ दिखाई देती है। प्याज की झिल्ली की कोशिकाएँ एकसमान दिखाई देती है। ये छोटी – छोटी संस्चनाएँ शल्क कंद प्याज की मूलभूत इकाई है। इन संरचनाओ की कोशिका कहते है।
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