Bihar board class 9th Sanskrit ch 3 Solutions| यक्षयुधिष्ठिर-संवादः
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अभ्यासः (मौखिकः)
- संस्कृत भाषया उत्तराणि वदत-
प्रश्न
(क) केनस्वित् आवृतो लोक
उत्तर- अज्ञानेन आवृतोलोकः ।
प्रश्न
(ख) किं ज्ञानम्
उत्तर- तत्त्वार्थ संबोधः ज्ञानम्।
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प्रश्न
(ग) पुंसां दुर्जयः शत्रुः कः
उत्तर- क्रोधः
प्रश्न
(घ) कः अनन्तक व्याधिः
उत्तर- लोभः अनन्तकः व्याधिः।
प्रश्न
(ङ) कः साधुः
उत्तर- सर्वभूतहितः साधुः।
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प्रश्न
(च) कुतः मित्राणि त्यजति
उत्तर- लोभात् मित्राणि त्यजति।
प्रश्न
(छ) केन स्वर्गं न गच्छति
उत्तर- सङ्गात् स्वर्ग न गच्छति।
प्रश्न
(ज) का दया
उत्तर- दया सर्वसुखैषित्वम्।
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प्रश्न
(झ) किं ज्ञानम्
उत्तर- ज्ञानं तत्त्वार्थसम्बोधः ।
प्रश्न
(ज) कि स्थैर्यम्
उत्तर- स्वधर्मे स्थिरता स्थैर्यम्।
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अभ्यासः (लिखितः)
- एकवाक्येन संस्कृतभाषया उत्तराणि लिखत-
प्रश्न
(क) किं धैर्यमुदाहृतम
उत्तर – इन्द्रियनिग्रहः धैर्यम् अस्ति।
प्रश्न
(ख) स्त्रानं किमुच्यते
उत्तर – मनोमलत्यागो स्नानम् उच्यते।
प्रश्न
(ग) भूतानां लक्षणं किमस्ति
उत्तर – भूतानां रक्षणं दानम् अस्ति।
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प्रश्न
(घ) कः पुमान् पण्डितः ज्ञेयः
उत्तर – धर्मज्ञः पुमान् पण्डितः ज्ञेयः।
प्रश्न
(ङ) संसारहेतुः कोऽस्ति
उत्तर – संसारहेतुः कामः अस्ति।
- उदाहरणम् अनुसृत्य अधोलिखित वाक्येषु रेखाङ्गितपदानि आधृत्य प्रश्नान् विरचयत-
उदाहरण- सूर्योदयेन अन्धकारः नश्यति।
प्रश्न- केन अन्धकारः नश्यति?
प्रश्न
(क) तमसा लोक न प्रकाशते।
उत्तर- केन लोकः न प्रकाशते?
प्रश्न
(ख) ज्ञानं तत्त्वार्थसम्बोधः ।
उत्तर- किं ज्ञानम्?
प्रश्न
(घ) अनन्तकः व्याधिः लोभः।
उत्तर- कीदृशः व्याधिः लोभः?
प्रश्न
(ङ) स्वधर्मे स्थिरता स्थैर्यम्।
उत्तर- कस्मिन् स्थिरता स्थैर्यम्?
- अधोलिखित वाक्येषु कोष्ठात् समुचितं पदमादाय रिक्तास्थानानी पूरयत-
प्रश्न
(क) लोकः ………………… आवृत: ।(अज्ञानेन, ज्ञानेन)
उत्तर- अज्ञानेन
प्रश्न
(ख)……… सुदुर्जयः शत्रु: । (क्रोधः, लोभ:)
उत्तर- क्रोधः
प्रश्न
(ग) अनन्तकः व्याधिः…………….. ।(लोभ:, क्रोधः)
उत्तर- लोभ
प्रश्न
(घ) साधु ……………….. स्मृतः । (सदयः, निर्दयः)
उत्तर- सदयः
प्रश्न
(ङ) इन्द्रियनिग्रहः …… । (अधैर्यम्, धैर्यम्)
उत्तर- धैर्यम्
- संधिविच्छेदं कुरुत-
(क) केनस्विदावृतः = केनस्वित् + आवृतः ।
(ख) केनस्विन्न = केनस्वित् + न
(ग) सुखैषित्वम् = सुख + एषित्वम्
(घ) व्याधिरनन्तकः = व्याधिः + अनन्तकः
(ङ) प्रोच्यते = प्र + उच्यते।
तृतीयः पाठः यक्षयुध्ष्ठिरसंवादः का हिंदी अर्थ
[अयं पाठः व्यासरचितस्य महाभारतस्य वनपर्वणः (अध्यायः-313) संकलितः। महाभारतं संस्कृतभाषायाः विशालतमो ग्रन्थः लक्षश्लोकात्मकः । अस्मिन् ग्रन्थे अष्टादश पर्वाणि सन्ति। तेषु वनपर्व अन्यतमम्। तत्र पाण्डवाः वने विचरन्ति। एकदा ते एकं सरोवरं गताः। तस्य स्वामी यक्षः। ये सरोवरात् जलं पातुम् इच्छन्ति, तान् स यक्षः प्रश्नान् करोति। उत्तरम् अदत्त्वा ये जलं पिबन्ति ते मूर्च्छिताः पतन्ति। सैव गतिः भीमस्य अर्जुनस्य नकुलस्य सहदेवस्य च जाता। अन्ततः युधिष्ठिरः तत्र गतः। स एव यक्षप्रश्नानां समुचितम् उत्तरं ददाति। प्रश्नोत्तरेषु नीतिः सदाचारश्च वर्णितौ।]
हिंदी अर्थ: [यह ग्रन्थ व्यास द्वारा रचित महाभारत के वन पर्व (अध्याय-313) से संकलित है। महाभारत संस्कृत का सबसे बड़ा ग्रंथ है और इसमें एक लाख श्लोक हैं। इस पुस्तक में अठारह त्यौहार हैं। वन महोत्सव उनमें से एक है। वहां पांडव वन में विचरण करते हैं। एक बार वे एक झील पर गये। उनके स्वामी यक्ष हैं।यक्ष उन लोगों से प्रश्न करता है जो झील से पानी पीना चाहते हैं। जो लोग बिना उत्तर दिये पानी पीते हैं वे बेहोश हो जाते हैं। भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव का भी यही हश्र हुआ। अंततः युधिष्ठिर वहां गये। वे ही यक्षों के प्रश्नों का उचित उत्तर देते हैं प्रश्न और उत्तर में नैतिकता और सदाचार का वर्णन किया गया।]
यक्षः- केन स्विदावृतो लोकः केनस्विन्न प्रकाशते ।
केन त्यजति मित्राणि केन स्वर्गं न गच्छति ।।1।।
हिंदी अर्थ: यक्ष ने कहा— संसार पसीने से क्यों लथपथ है और वह चमकता क्यों नहीं है? कौन अपने मित्रों को छोड़ देता है और कौन स्वर्ग नहीं जाता
युध्ष्ठिरः- अज्ञानेनावृतो लोकस्तमसा न प्रकाशते ।
लोभात् त्यजति मित्राणि सग्डात् स्वर्गं न गच्छति ।।2।।
हिंदी अर्थ: युधिष्ठिर ने कहा— संसार अज्ञान से ढका हुआ है और अंधकार से प्रकाशित नहीं है। जो लोभ के कारण अपने मित्रों को त्याग देता है, वह मोह के कारण स्वर्ग नहीं जाता
यक्षः- किं ज्ञानं प्रोच्यते राजन् कः शमश्च प्रकीर्तितः ।
दया च का परा प्रोक्ता किं चार्जवमुदाहृतम् ।।3।।
हिंदी अर्थ: यक्ष ने कहा— हे राजन, ज्ञान क्या है और शांति क्या है? और सर्वोच्च दयालुता क्या घोषित की गई है, और स्पष्टता क्या घोषित की गई है?
युध्ष्ठिरः- ज्ञानं तत्त्वार्थसम्बोध्ः शमश्चित्तप्रशान्तता ।
दया सर्वसुखैषित्वमार्जवं समचित्तता ।।4।।
हिंदी अर्थ: युधिष्ठिर ने कहा— ज्ञान मन की शांति और शांति के सही अर्थ की प्राप्ति है। करुणा, सभी सुखों की इच्छा, सादगी और समता।
यक्षः- कः शत्रार्दुर्जयः पुंसां कश्च व्याध्रिनन्तकः ।
को वा स्यात् पुरुषः साधुरसाधुः पुरुषश्च कः ।।5।।
हिंदी अर्थ: यक्ष ने कहा— वह शत्रु कौन है जो मनुष्यों के लिए अजेय है, और कौन भेड़ियों का नाश करने वाला है? कौन अच्छा आदमी है और कौन अधर्मी आदमी है।
युध्ष्ठिरः- क्रोध्ः सुदुर्जयः शत्रार्लोभो व्याध्रिनन्तकः ।
सर्वभूतहितः साधुरसाधुःर्निर्दयः स्मृतः ।।6।।
हिंदी अर्थ: युधिष्ठिर ने कहा— क्रोध अजेय है, शत्रु लोभ रोग का नाश करने वाला है।जो सभी प्राणियों का भला करता है, वह धर्मी, अधर्मी और निर्दयी कहा जाता है
यक्षः- किं स्थैर्यमृषिभिः प्रोक्तं किं च धैर्यमुदाहृतम् ।
स्नानं च किं परं प्रोक्तं दानं च किमिहोच्यते ।।7।।
हिंदी अर्थ: यक्ष ने कहा— ऋषियों ने दृढ़ता का क्या वर्णन किया है और धैर्य का क्या वर्णन किया है? और यहाँ अगला स्नान कौन सा बताया गया है और कौन सा दान बताया गया है?
युध्ष्ठिरः- स्वर्ध्मे स्थिरता स्थैर्यं धैर्यमिन्द्रियनिग्रहः ।
स्नानं मनोमलत्यागो दानं वै भूतरक्षणम् ।।8।।
हिंदी अर्थ: युधिष्ठिर ने कहा— स्वर्गीय क्षेत्र में स्थिरता, इंद्रियों की स्थिरता, धैर्य और संयम है। स्नान, मन की अशुद्धियों का त्याग, दान और प्राणियों की रक्षा।
यक्षः- कः पण्डितः पुमाग्ज्ञेयो नास्तिकः कश्च उच्यते ।
को मूर्खः कश्च कामः स्यात् को मत्सर इति स्मृतः ।।9।।
हिंदी अर्थ: यक्ष ने कहा— किसे विद्वान समझा जाए और किसे नास्तिक कौन मूर्ख है, कौन कामी है, कौन ईर्ष्यालु है, इसका स्मरण किया जाता है।
युध्ष्ठिरः- र्ध्मज्ञः पण्डितो ज्ञेयो नास्तिको मूर्ख उच्यते ।
कामः संसारहेतुश्च हृत्तापो मत्सरः स्मृतः ।।10।।
हिंदी अर्थ: युधिष्ठिर ने कहा— धर्म को जानने वाला व्यक्ति विद्वान कहलाता है और नास्तिक व्यक्ति मूर्ख कहलाता है। वासना और संसार का कारण हृदय की पीड़ा और ईर्ष्या को कहा गया है।
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