bihar board class 10 history chapter 1 | history chapter 1 Long answer BSEB
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नः- (लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें)
प्रश्नः-bihar board class 10 history chapter 1
1.इटली के एकीकरण में मेजिनी काबूर और गैरीबाल्डी के योगदानों को बतावें।
उत्तर— मेजिनी — मेजिनी साहित्यकार गणतांत्रिक विचारों का समर्थक और योग्य सेनापति था। 1820 ई० में राष्ट्रवादियों ने एक गुप्त दल ‘कार्बोनरी’ की स्थापना की थी जिसका उद्देश्य छापामार युद्ध द्वारा राजतंत्र को समाप्त कर गणराज्य की स्थापना करना था । कार्बोनरी के असफल होने पर मेजनी ने अनुभव किया कि इटली का एकीकरण कार्बोनरी की योजना के अनुसार नहीं हो सकता है। 1831 में उसने ‘युवा इटली’ नामक संस्था की स्थापना की जिसने नवीन इटली के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। मेजिनी के दिमाग में संयुक्त इटली का स्वरूप जितना स्पष्ट और निश्चित था उतना किसी अन्य के दिमाग में नहीं था। इसके अलावे पोप भी इटली को धर्मराज्य बनाने का पक्षधर था । विचारों की टकराहट के कारण इटली के एकीकरण का मार्ग अवरुद्ध हो गया था। कालांतर में आस्ट्रिया ने इटली के कुछ भागों पर आक्रमण किया जिसमें सार्डिनिया के शासक चार्ल्स एल्बर्ट पराजित हुआ । आस्ट्रिया ने इटली में जनवादी आंदोलन को कुचल दिया, मेजनी की पुनः हार हुई और वह इटली से पलायन कर गया ।
काउंट काबूर—काबूर एक सफल कूटनीतिज्ञ एवं राष्ट्रवादी था। वास्तव में काबूर के बिना मेजनी का आदर्शवाद और गैरीवाल्डी की वीरता निरर्थक होती । काबूर काबूर न इन दोनों के विचारों vec H सामन्जस्य स्थापित किया । काबूर यह जानता था कि-
(i) इटली का एकीकरण सार्डिनिया पिडमाउंट के नेतृत्व में ही संभव हो सकता है
(ii) एकीकरण के लिए आवश्यक है कि इटली के राज्यों को आस्ट्रिया से मुक्त कराया जाए।
(iii) आस्ट्रिया से मुक्ति बिना विदेशी सहायता के संभव नहीं है। अतः आस्ट्रिया को पराजित करने के लिए काबूर ने फ्रांस से मित्रता कर ली । 1853-1854 ई० के क्रीमिया युद्ध में फ्रांस को मदद किया जिसका प्रत्यक्ष लाभ युद्ध के बाद पेरिस के शांति सम्मेलन में मिला। इस सम्मेलन में फ्रांस और आस्ट्रिया के साथ पिडमाउंट को भी बुलाया गया। यह काबूर की सफल कूटनीति का परिणाम था। इस सम्मेलन में काबूर ने इटली में आस्ट्रिया के हस्तक्षेप को गैर कानूनी घोषित किया। काबूर ने इटली की समस्या को पूरे यूरोप का समस्या बना दिया ।
गैरीबाल्डी-_गैरीबाल्डी ने सशस्त्र क्रांति के द्वारा दक्षिणी इटली के प्रात का एकीकरण कर वहाँ गणतंत्र की स्थापना करने का प्रयास किया। गैरीबाल्डी ने सिसली और नेपल्स पर आक्रमण किया। इन प्रांतों की अधिकांश जनता बूर्वो राजवंश के निरंकुश शासन से तंग होकर गैरीबाल्डी का समर्थक बन गई थी । गैरीबाल्डी ने यहाँ विक्टर इमैनुएल के प्रतिनिधि के रूप में सत्ता संभाली। गैरीबाल्डी के दक्षिण अभियान का काबूर ने भी समर्थन किया । 1862 ई॰ में गैरीबाल्डी ने रोम पर आक्रमण की योजना बनाई । काबूर ने गैरीबाल्डी के इस अभियान का विरोध करते हुए रोम की रक्षा के लिए पिडमाउंट की सेना भेज दी। अभियान के बीच में ही गैरीबाल्डी की काबूर से भेंट हो गई तथा रोम अभियान वहीं खत्म हो गया । दक्षिणी इटली के जीते गए क्षेत्रों को गैरीबाल्डी ने विक्टर इमैनुएल को सौंप दिया । इस प्रकार शेष जर्मनी का एकीकरण 1871 में विक्टर इमैनुएल द्वितीय के नेतृत्व में पूरा हुआ ।
bihar board class 10 history chapter 1
प्रश्नः-
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जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका का वर्णन करें ।
उत्तर—बिस्मार्क हीगेल के विचारों से प्रभावित था। बिस्मार्क जर्मन संसद (डायट) में प्रशा का प्रतिनिधित्व करते हुए अपनी सफल कूटनीति का परिचय लगातार देता आ रहा था। जर्मनी में उदारवादी राष्ट्रवादी हों या कट्टरवादी राष्ट्रवादी सभी उसके विचारों के समर्थक थे। विस्मार्क जर्मनी के एकीकरण के लिए सैन्य शक्ति को महत्त्वपूर्ण मानता था । इसके लिए उसने रक्त और लौह की नीति का पालन किया। रक्त एवं लौह नीति से तात्पर्य था कि सैन्य उपायों द्वारा ही जर्मनी का एकीकरण करना। उसने जर्मनी में अनिवार्य सैन्य सेवा लागू कर दी। जर्मनी के एकीकरण के लिए बिस्मार्क के तीन उद्देश्य थे—
(i) पहला उद्देश्य प्रशा को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाकर उसके नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण को पूरा करना था । (ii) दूसरा उद्देश्य आस्ट्रिया को परास्त कर उसे जर्मन परिसंघ के बाहर निकालना था ।
(iii) तीसरा उद्देश्य जर्मनी को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाना था ।
बिस्मार्क ने 1830 के आस्ट्रिया-प्रशा संधि का विरोध किया जिसमें प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण नहीं किया जा सकता था। इस विरोध के कारण प्रशा के नेतृत्व में जर्मन एकीकरण की भावना जोर पकड़ने लगी |प्रशा ने जर्मन राष्ट्रवादी भावनाओं को भड़काकर हाल्सटाइन में विद्रोह फैला दिया। विस्मार्क की दोहरी नीति को आस्ट्रिया अपना अपमान समझा तथा क्षुब्ध होकर 1866 ई० में आस्ट्रिया ने प्रशा के खिलाफ सेडोवा में युद्ध की घोषणा कर दी। दोनों तरफ से युद्ध में फँसने के कारण आस्ट्रिया बुरी तरह पराजित हुआ। आस्ट्रिया का जर्मन क्षेत्रों से प्रभाव खत्म हो गया। इस तरह जर्मनी के एकीकरण का दो तिहाई कार्य पूरा हो गया ।शेष जर्मनी के एकीकरण के लिए फ्रांस से युद्ध करना आवश्यक था क्योंकि जर्मनी के दक्षिणी प्रांतों में फ्रांस हस्तक्षेप कर सकता था। विस्मार्क ने इस बात को तोड़-मरोड़ कर प्रेस में जारी किया जिसे एम्स का तार कहा जाता है। एम्स के तार का जर्मन राष्ट्रवादियों ने विरोध किया। इससे चिढ़कर फ्रांस के शासक नेपोलियन ने 19 जून, 1870 को प्रशा के खिलाफ सेडॉन युद्ध की घोषणा कर दी जिसमें फ्रांस की हार हुई। 10 मई, 1871 ई० को फ्रैंकफर्ट की संधि द्वारा दोनों राष्ट्रों के बीच शांति स्थापित हुई। इस प्रकार शेष जर्मनी का एकीकरण 1871 में पूर्ण हुआ ।
प्रश्नः-
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राष्ट्रवाद के उदय के कारणों एवं प्रभाव की चर्चा करें । bihar board class 10 history chapter 1
उत्तर—राष्ट्रवादी चेतना का उदय यूरोप में पुनर्जागरण काल से ही शुरू हो चुका था, परन्तु 1789 ई० के फ्रांसीसी क्रांति में यह सशक्त रूप लेकर प्रकट हुआ। 19वीं शताब्दी तक आते-आते परिणाम युगान्तकारी सिद्ध हुए । 18वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में नेपोलियन के आक्रमणों ने यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इटली, पोलैण्ड, जर्मनी और स्पेन में नेपोलियन द्वारा ही ‘नव युग’ का संदेश पहुँचा, फ्रांसीसी क्रांति का नारा ‘स्वतंत्रता, समानता और विश्वबंधुत्व’ ने राजनीति को अभिजात्य वर्गीय परिवेश से बाहर कर उसे अखबारों, सड़कों और सर्वसाधारण की वस्तु बना दिया। नेपोलियन के आक्रमण से इटली और जर्मनी में एक नया अध्याय आरम्भ होता है। उसने समस्त देश में एक संगठित एवं एकरूप शासन स्थापित किया इससे वहाँ राष्ट्रीयता के विचार उत्पन्न हुए। इसी राष्ट्रीयता की भावना ने जर्मनी और इटली को मात्र भौगोलिक अभिव्यक्ति की सीमा से बाहर निकालकर उसे वास्तविक एवं राजनैतिक रूप रेखा प्रदान की जिससे इटली और जर्मनी के एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ ।
परिणाम- (i) यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना का विकास के कारण यूरोपीय राज्यों का एकीकरण हुआ। इसके कारण कई बड़े तथा छोटे राष्ट्रों का उदय हुआ ।
(ii) यह यूरोपीय राष्ट्रवाद का परिणाम था कि 19वीं शताब्दी के अंतिम उत्तरार्द्ध में ‘संकीर्ण राष्ट्रवाद’ को जन्म दिया। संकीर्ण राष्ट्रवाद के कारण प्रत्येक राष्ट्र की जनता और शासक के लिए उनका राष्ट्र ही सब कुछ हो गया। इसके लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार थे। बाल्कन प्रदेश के छोटे-छोटे राज्यों एवं विभिन्न जातीय समूहों में भी यह भावना जोर पकड़ने लगी ।
(iii) यूरोपीय राष्ट्रवाद के प्रभाव के कारण जर्मनी, इटली जैसे राष्ट्रों में साम्राज्यवादी प्रवृतियों का उदय हुआ। इस प्रवृति ने एशियाई एवं अफ्रीकी देशों को अपना निशाना बनाया जहाँ यूरोपीय देशों ने उपनिवेश स्थापित किये। इन्हीं उपनिवेशों के शोषण पर ही औद्योगिक क्रांति की आधारशिला टिकी थी। इसी साम्राज्यवादी प्रवृति के कारण ओटोमन साम्राज्य का पतन हुआ तथा पूरे बाल्कन क्षेत्र में पूर्वी समस्या आई ।
प्रश्नः-
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जुलाई 1830 की क्रांति का विवरण दें । bihar board class 10 history chapter 1
उत्तर-फ्रांस के शासक चार्ल्स – X एक निरंकुश एवं प्रतिक्रियावादी शासक था। इसके काल में इसका प्रधानमंत्री पोलिग्नेक ने लुई 18वें द्वारा स्थापित समान नागरिक संहिता के स्थान पर शक्तिशाली अभिजात्य वर्ग की स्थापना की तथा इस वर्ग को विशेषाधिकार प्रदान किया। उसके इस कदम से उदारवादियों एवं प्रतिनिधि सदन ने पोलिग्नेक का विरोध किया। चार्ल्स X ने 25 जुलाई, 1830 ई० को चार अध्यादेशों द्वारा उदारवादियों को दबाने का प्रयास किया। इस अध्यादेश के खिलाफ पेरिस में क्रांति की लहर दौड़ गई तथा फ्रांस में गृह युद्ध आरम्भ हो गया । इसे ही जुलाई, 1830 की क्रांति कहते हैं। परिणामस्वरूप चार्ल्स X फ्रांस की गद्दी को छोड़कर इंगलैण्ड पलायन कर गया तथा इसी के साथ फ्रांस में बूर्वो वंश के शासन का अंत हो गया । जुलाई, 1830 की क्रांति के परिणामस्वरूप फ्रांस में बूव वंश के स्थान पर आर्लेस वंश गद्दी पर आई । आर्लेयेंस वंश के शासक लुई फिलिप ने उदारवादियों, पत्रकारों तथा पेरिस की जनता के समर्थन से सत्ता प्राप्त की थी अतः उसकी नीतियाँ उदारवादियों के समर्थन में तथा संवैधानिक गणतंत्र की स्थापना करना था।
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प्रश्नः-
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यूनानी स्वतंत्रता आन्दोलन का संक्षिप्त विवरण दें । bihar board class 10 history chapter 1
उत्तर—यूनान में राष्ट्रीयता का उदय यूनान का अपना गौरवमय अतीत रहा है जिसके कारण उसे पाश्चात्य राष्ट्रों का मुख्य स्रोत माना जाता था। यूनानी सभ्यता की साहित्यिक प्रगति, विचार, दर्शन, कला, चिकित्सा विज्ञान आदि क्षेत्रों में उपलब्धियाँ पाश्चात्य देशों के लिए प्रेरणास्रोत थी। पुनर्जागरण काल से ही पाश्चात्य देशों ने यूनान से प्रेरणा लेकर काफी विकास किया था, परन्तु इसके बावजूद यूनान अभी भी तुर्की साम्राज्य के अधीन था। फ्रांसीसी क्रांति से प्रभावित होकर यूनानियों में राष्ट्रवाद की भावना का विकास किया । धर्म, जाति और संस्कृति के आधार पर यूनानियों की पहचान एक थी फलतः यूनान में तुर्की शासन से अपने को अलग करने के लिए कई आंदोलन चलाये जाने लगे। इसके लिए वहाँ हितेरिया फिलाइक (Hetairia Philike) नामक संस्था की स्थापना ओडेसा नामक स्थान पर की गई। यूनान की स्वतंत्रता का सम्मान समस्त यूरोप के नागरिक करते थे । इंगलैण्ड का महान कवि लॉर्ड बायरन यूनानियों की स्वतंत्रता के लिए यूनान में ही शहीद तुर्की के तरफ से मिस्र की सेना थी। युद्ध में मिस्र और तुर्की की सेना पराजित हुई। 1829 ई० में एंड्रियानोपोल की संधि हुई जिसमें यूनान को स्वायतता देने की बात तय हुई परन्तु यूनानी राष्ट्रवादियों ने संधि की बातों को मानने से इंकार कर दिया । इंगलैण्ड और फ्रांस भी यूनान पर रूस के प्रभाव के बदले इसे स्वतंत्र देश बनाना बेहतर समझा। 1832 में यूनान को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया गया। बवेरिया के शासक ‘ओटो’ को स्वतंत्र यूनान का राजा बनाया गया ।
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